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इजहार शायरी Pyar Ka Izhaar Shayari Ke Sath

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तुम्हे पता है तुम्हे दिल हार बैठे है
जाने कब से हम यहाँ बेकार बैठे है


इन्तजार रख ले कोई अपने पास में,
हम तो कबसे यहाँ बेक़रार बैठे है


मुझसे खेलना फिर तबाह कर देना ,
ये शौक था तेरा या तुझे मुहब्बत ही नही थी


मैं कैसे मान लू तू भरोसे के काबिल था,
तुझे जाना ही था तो धोखे से क्यों गया


ये तुमसे कह दिया किसने के बाज़ी हार बैठे हम ,
मुहब्बत मैं लुटाने को अभी जान बाकी है


मुझे आज भी इन्तजार तेरा है,
खुदा से मैंने माँगा वही जो सिर्फ मेरा है


मुद्दत हो गयी खुद को पहचाने हुए ,
अब आईने भी देखू तो तू अपना सा नहीं लगता


आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने ऐतबार किया


वक़्त रहते संभल जाना
बेहतर है खामोश निकल जाना


बेशक तेरे हौसले कही से कम ना थे
पर तू जिन रास्तो पे था उनपे हम ना थे


मैं आज भी उन्ही फैसलों में उलझा हूँ
कभी जिनमे तू मुझसे मशवरे लिया करती थी


बाहर का नहीं होता अपना घर जलाने वाला ,
कोई अपना ही होता है दिल दुखाने वाला


सबसे गुनहगार हम थे जो मानते नहीं थे ,
समझते थे तुम्हे नादाँ जो जानते नहीं थे
पल पल की बेकरारी हर पल की जुश्तजू ,
इतने रहे करीब फिर भी पहचानते नहीं थे


मेरे ही खिलाफ उनकी सारी साजिशें थी,
मैं ना रहा तो वो पाक साफ़ हो गए


हिसाब रखते जाइये सुनहरे पलो का ,
वक़्त का क्या है कब बुरा हो जाये


यहाँ तो इंसान बनने की लड़ायी है ,
फरिश्ता बनके कोई कब तक जियेगा


ऐसा नहीं की तू मेरे मन के पास नहीं ,
तू मेरा ही है इस दिल को विश्वास नहीं


मेरे सब्ब्र का इम्तहान मेरी सांसे लेती रही
की जब तक हार ना मानी मेरा साथ नहीं छोड़ा


लड़खड़ा लू की अब मैं होश में कहाँ हूँ ,
मुहब्बत के नशे में इतनी रविश ठीक नहीं


ना जाने कितने अपनों को खो दिया ये सोच कर ,
मैं तो सही हूँ मुझे फर्क ही क्या है


उस फूल को कोई गिला नहीं,
जो टूट कर ज़मीन में मिला नहीं


उनका मेरे घर के सामने से गुजर जाना
बहुत आसान होता है हाँ कहके मुकर जाना

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